विश्व का पहला भू माता मंदिर निर्माण …

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भू माता मूर्ती


नमस्ते स्नेही जनों l

करीब-करीब दो वर्ष पश्चात फिरसे ‘मंगल महात्म्य’ इस ब्लॉगके माध्यमसे आपसे संवाद हो रहा है l इस लेखन कार्य के लिए हमेशा प्रयत्नरत होने का प्रयास रहेगा l सन २०२१ का व्यक्तिगत संकल्प यही है l

मंगलग्रह देवता संस्थानद्वारा विश्व के पहले ‘भू माता’ और ‘पंचमुखी हनुमान’ मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण हो गया है l अब इस मंदिर में देवतोओं की प्रतिमा की प्राणप्रतिष्ठा होने जा रही है l इसी संदर्भ में सभींको जानकारी देने का उद्देश है l संपूर्ण भारतवर्ष का हिंदू समाज हमारे देश की जमिन (भू भाग) को ‘भारत माता’ का संबोधन करता है l अर्थात, जिस मिट्टी में हमारा जन्म हुआ, जहाँ हम पले, बढे और जिस जगह हमे काम तथा भोजन मिलता है, उसी मिट्टी को माता का संबोधन देना यह हमारे सनातन धर्म का  संस्कार है l वेद, उपनिषद, पुराण और धर्म ग्रंथ के संदर्भ-साक्षीसे संपूर्ण पृथ्वी को ‘भू माता’ का  रुप-स्वरूप देने का प्रयास किया गया है l मंगलग्रह देवता संस्थान (अमलनेर, जि. जलगाव) ने इसी धारणा को मंदिर का मूर्त रुप देना का प्रयास किया है l

क्या है यह प्रयास ? इस प्रश्न का जबाब स्पष्ट होना जरुरी है l हमारे वेद, उपनिषद, पुराणों में भू माता का उल्लेख कई कथाओं में आता है l धरती देवी के लिए संस्कृत नाम पृथ्‍वी है और उन्हे भू देवी या भूमि देवी भी कहा जाता है l वह भगवान विष्णु की पत्नी है । लक्ष्मी के दो रूप माने जाते है l भूदेवी और श्रीदेवी l भूदेवी धरती की देवी है और श्रीदेवी स्वर्ग की देवी l पहली उर्वरा (उपजाऊ भूमि) से जुडी है l दूसरी महिमा और शक्ति से l भूदेवी सोने और अन्न के रूप में वर्षा करती है l दूसरी शक्तियाँ, समृद्धि और पहचान देती है l भूदेवी सरल और सहयोगी पत्नी है जो अपने पति विष्णु की सेवा करती है l विष्णु के पत्नी के रुपमें पृथ्वी देवता स्वरुप थी l किंतु उसका रुप अत्यंत अल्प था l पृथ्वीपर समुद्र का पानी भरा था l जमिन बहुत अल्प थी l अगर पृथ्वीपर जमिन या धरा को बढाना है तो, समुद्र मंथन करना जरुरी है यह विचार विष्णुने सृष्टीके निर्माता ब्रह्मासे कहा l फिर देवता और असुर मिलकर समुद्र मंथन के लिए तैय्यार हुए l समुद्र मंथन के लिए मंदार पर्वत को रई ओर वासुकी नाग को रस्सा बनाया गया l समुद्र मंथन करते समय मंदार पर्वत को पानी में निचले हिस्से में आधार की जरुरत थी l फिर विष्णुने कछुए का रुप धारण किया l अर्थात, इस कथा में लक्ष्मी के क्षीर सागरमें खोज का भी उपकथानक है l उसके पश्चात समुद्र मंथन का निर्णय हुआ l 
अन्य और कथा नुसार समुद्र मंथन विषयी जानकारी उपलब्ध होती है l भू माता के जन्म संबंधि और भी संदर्भ है l जैसे एक कथानुसार नगलागढू के ग्राम प्रधान गौरिशंकर के अनुसार ऋषी मार्कंडेयजी ने अपने संकल्प से धरती की रचना की।   दुसरी कथानुसार गरुड़ीने अंडा रखा था l वह गिरकर टूट गया l उसका एक भाग धरती बना और दूसरा आकाश।   यह अंडा सोने का था और जल में से निकला था।   पुराण कथानुसार मधु और कैटभ नामक दैत्यों के मेद से पृथ्वी उत्पन्न हुई l इसी कारण धरती को मेदिनी कहा जाता है l, ब्रह्मा की सृष्टि होने के कारण धरती ब्रह्मा की बेटी है।

रामायण में माता सिता की उपज भू माता से होने का संदर्भ है l चंद्र और मंगलग्रह देवताओं की उपजभी भू माता से मानी जाती है l इस बात को खगोलशास्त्र भी मान्यता देता है l अब इस वास्तविकताके अनुसार देखे तो ‘भू माता’ का रूप अती विशाल हो जाता है l हम जिसे ‘भारत माता’ कहते है वो वास्तव में ‘पृथ्वी माता’ है l इसी कारणसे हम संबोधन ‘भू माता’ का दे रहे है l

‘भू माता’ संबोधन देने के पश्चात प्रश्न यही था के ‘भू माता’ की प्रतिमा या मूर्ती का रुप-स्वरूप कैसा होगा ? ‘भारत माता’ के प्रतिमा या मूर्ती को कलाकार और मुर्तिकारोंने रुप-स्वरूप निश्चित दिया है, किंतु भू माता के प्रतिमा संदर्भ में वेद, पुराणों में कोई संदर्भ नही है l ‘भारत माता’ के प्रतिमा निर्माण में आज भी निश्चित कोई निकष नही है l हम देखते है भारत माता की प्रतिमा कही चार भुजाओंवाली है l कही प्रतिमा के साथ सिंह है l किसी मूर्ती को मात्र दो भुजाँए है l कही माता के हात में भगवा ध्वज है l कही त्रिशूल है l एक विशेषतः निश्चित है, ‘भू माता’ के पार्श्व भारत भूमि का नक्षा जरूर है l ‘भारत माता’ प्रतिमा की यह अपनी स्वतंत्र पहचान है l रुप-स्वरूप कैसे भी हो मात्र हर हिंदू भारतीय को ‘भारत माता’ वंदनिय है l उसका अस्तित्व पवित्र है l 

‘भारत माता’ के प्रतिमा और ‘भू माता’ के प्रतिमा निश्चिती करण में कुछ बाते धर्म पंडित तथा साधू संत के विचार और मार्गदर्शनसे निश्चित होना जरुरी था l इस कार्य की जिम्मेवारी को अमलनेर स्थित वाडी संस्थान के प्रमुख संत श्रीमान प्रसाद महाराजजीने मूर्त स्वरूप दिया l विष्णू के अवतार माने जानेवाले पंढरपूर स्थित भगवान विठ्ठल तथा विठू माऊली (यह भी माता का संबोधन है) के परम भक्त गण से चर्चा के बाद समुद्र मंथन का संदर्भ सामने आया l इस कथा का संदर्भ लेकर ‘भू माता’ की मूर्ती का निर्माण कार्य किया गया है l ‘भू माता’ की मूर्ती में कछुए के पिठ पर पृथ्वी का गोल है और उस पर माता की प्रतिमा है l इस प्रकार से विश्व की पहली ‘भू माता’ प्रतिमा का निर्माण कार्य संपन्न हुआ है l अब इस प्रतिमा तथा मूर्ति का प्राणप्रतिष्ठा विधी दि. ९ जनवरी, शनिवार और दि. १० जनवरी २०२१, रविवार को हो रहा है l इस मंगल, पावन अवसरपर विधीवत होम, हवन, मूर्ति स्थापना और महाप्रसाद का आयोजन किया गया है l मंगलग्रह देवता के निवास के सानिध्य में अब भू माता निवास करने आ रही है l पुत्र और माता के इस स्नेह मिलन समारोह की अनुभुति और आनंद को प्राप्त करने हेतु सभी मंगलदेवता भक्त और स्नेही जन आमंत्रित है l

जय मंगल भवतु !!….

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