मंगलग्रह के प्रभाव को कम करे माता चंद्रघंटा !

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नवरात्री विशेषमित्रों नमस्कार
माता भगवतीके 
स्वागत और उपासना का पर्व आज (दि. ७ अक्तुबर) से प्रारंभ हो रहा है l सभी मंगलभक्त और हितैषि परिवार को नवरात्रीकी मंगलमय शुभकामनाएँ l आप सभी अपने शरीर के अंदर स्थिती और प्रवृत्तीनुसार उत्पन्न हो रहे विकार को दूर करने का प्रयास इस नवरात्री में जरूर करे और आपको सफलता प्राप्त हो यही अपेक्षा है l
आज हम नवरात्री और मंगलग्रह भगवान के उपासनासंबंधी बात करेंगे l आप सभी के सामने प्रश्न जरूर होगा, माता भगवती तथा आदिशक्ती के उपासना पर्व में मंगलग्रह उपासनाका महत्त्व क्या है ? किंतु मंगलभक्त और मंगल सेवक के रूप में आपको इस महत्त्व संबंधी जागृत करना मेरा कर्तव्य है l
नवरात्री का माहौल प्रारंभ होने के पश्चात हम सब माता भगवतीसे प्रार्थना करते है कि, ‘हे माता मुझे रिद्धि दे, सिद्धि दे, वंश में वृद्धि दे, ह्रदय में ज्ञान दे, चित्त में ध्यान दे, अभय वरदान दे, दुःख को दूर कर, सुख भरपूर कर, आशा को संपूर्ण कर, सज्जन जो हित दे, कुटुंब में प्रीत दे, जग में जीत दे, माया दे, साया दे, और निरोगी काया दे, मान-सम्मान दे, सुख समृद्धि और ज्ञान दे, शान्ति दे, शक्ति दे, भक्ति देl’. जब हम माताके कृपा की इस प्रकारसे अपेक्षा करते है तो हमे ध्यान देना है की, हमारी उन्नती, प्रगती या उत्कर्ष में मंगलग्रह भगवान के प्रकोप का कोई कारण उत्पन्न ना हो l इस अवस्था में एक दिशा में माता की कृपा है और दुसरी दिशा में मंगलग्रह भगवान का प्रकोप है l हमे इस द्विधासे निपटना है l
माता भगवती की उपासनासे हमारे मंगलषदोष का निवारण संभव होता है l जिस व्यक्ति के कुंडली में मंगलग्रह दोष हो वह माता के  तिसरे रूप की अराधाना या उपासना कर सकता है l ऐसा करनेसे उनके सारे कष्टों का नाश हो जाता है । माता का तिसरा रूप क्या है इसे हम समज लेते है l नवरात्री में माता के ऊ रूप हम देखते है l माता भगवती का पहला रूप ‘शैलपुत्री’ है l नवरात्री प्रारंभ के दिन घटस्थापना के बाद माता भगवती के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री का पूजन, अर्चन और स्तवन किया जाता है। शैल का अर्थ है हिमालय और पर्वतराज हिमालय के यहाँ जन्म लेने के कारण इन्हें शैलपुत्री तथा पार्वती कहा जाता है। माता भगवती का दुसरा रूप ‘ब्रह्मचारिणी’ है  l महर्षि नारद के कहने पर पार्वतीने भगवान महादेव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। हजारों वर्षों तक अपनी कठिन तपस्या के कारण ही इनका नाम तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी पडा l
माता भगवती का तिसरा रूप चंद्रघंटा है l नवरात्र के तिसरे दिन चंद्रघटा देवी के वंदन, पूजन और स्तवन करने का विधान है। देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्ध चंद्रमा विराजमान है l इसीलिये इनका नाम चंद्रघंटा पडा। चंद्रग्रह भुमातासे उत्पन्न है l मंगलग्रह भी भुमातासे उत्पन्न है l इस लिए चंद्रघंटा का रूप योद्धा देवी के रूप में है l इस देवी के दस हाथ माने गए हहै l हातों में  खड्ग आदि विभिन्न अस्त्र और शस्त्र है। ऐसा माना जाता है कि देवी के इस रूप की पूजा करने से मन को अलौकिक शांति प्राप्त होती है और इससे न केवल इस लोक में अपितु परलोक में भी परम कल्याण की प्राप्ति होती है। मंगलग्रह देवता देवोंके सेनापती है l वे भी योद्धा है l इसिलिए माता भगवती के तिसरे रूप की आराधना वा उपासनासे मंगलग्रह भगवान प्रसन्न होते है l
माता भगवती का चौथा रूप कूष्मांडा है l माना जाता है कि सृष्टि की उत्पत्ति से पूर्व जब चारों ओर अंधकार था तो माता दुर्गा ने इस अंड यानी ब्रह्मांड की रचना की थी। इसी कारण उन्हें कूष्मांडा कहा जाता है। माता भगवती का पाँचवा रूप स्कंदमाता है l स्कंद शिव और पार्वती के दूसरे और षडानन (छह मुख वाले) पुत्र कार्तिकेय का एक नाम है। स्कंद की माँ होने के कारण ही इनका नाम स्कंदमाता पडा है l माता भगवती का छठा रूफ कात्यायनी देवी का है l कात्य गोत्र के महर्षि कात्यायन के यहाँ माता भगवतीने पुत्री के रूप में जन्म लिया, इसिलिये इनका नाम कात्यायनी पडा l माता भगवती का सातवां रूप काली तथा कालरात्र देवी का है l इनका वर्ण अंधकार की भांति एकदम काला है। आसुरिक शक्तियों का विनाश करने के लिए माताने यह रूप धारण किया था। माता भगवतीने काली वर्ण से फिर गौर वर्ण होने के लिए तप किया l उसके पश्चात वे गौरवर्ण हुई l इसलिए माता का आठवा रूप महागौरी का है l इनके वस्त्र और सभी आभूषण भी श्वेत है। नवरात्र के नौवें दिन माता भगवती सिद्धदात्री रूप में होती है l इनके नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि इस देवी को सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त है l


माता भगवती के नौ रूप समजने के बाद हम माता चंद्रघटा की उपासना का विधी जान लेते है l चंद्रघटा माता की स्तुति लाल रंग के कपड़े पहन कर करे l मंगलग्रह भगवान का रंग भी लाल है । माता के इस रूप की पूजा करने से मंगलग्रह से होने वाली समस्याओ का समाधान होता हैहै । तिसरे दिन माता को लाल चुनरी, लाल फूल, रक्त चन्दन अर्पित करना बहुत ही शुभ होता है । अगर माता की साधना करने में किसी और प्रकार की शक्तियों की एहसास होता है तो उस पर किसी भी तरह से ध्यान ना दे । अपनी साधना को करते रहे । माता की उपासना करने से साहस की प्राप्ति होती हैं । इसी कारण रक्त, दुर्घटना, पांचन शक्ति की समस्यों से छुटकारा मिलता है । घबराहट, बैचैनी, भय से भी बहूत राहत मिलती है । मंगलग्रह के दोष भी दूर होते है l साथ ही मंगलग्रह से होने वाली सारी परेशानियों से बहुत जल्द ही छुटकारा मिलता है ।  जिस व्यक्ति के कुंडली में मंगलग्रह का दोष हो वह व्यक्ति चाहे स्त्री हो या पुरुष माता भगवती के तिसरे रूप की आराधना और उपासना जरूर करे l 
आराधना का तरिका है, लाल रंग के कपडे पहनकर माता की पूजा करे l लाल रंग के फूल, ताम्बे का सिक्का या ताम्बे की कोई भी वस्तू माता को अर्पण कर हलवा मेवे का माता को भोग लगाए । फिर माता के मंत्र का जप करे l उसके बाद मंगल के मूल मंत्र का जप करे । इस के  बाद माता को अर्पित किये गए तांबे के सिक्के में छेद कर के गले में धारण करे l यह उसको अपने पास रख ले इससे आप की समस्या का बहुत ही जल्द समाधान हो जायेगा ।


माता चंद्रघंटा का मंत्रॐ श्री चंद्रघंटाए नमो नमः 
मंगलग्रह भगवान का मंत्रॐ अं अंगारकाय नमः
शुभंम भवतू … मंगल भवतू !!!

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