स्नेही जनो सभी को मंगल नमस्ते ।
हम आज मंगलग्रह देवता तथा मंगलग्रह से जुडे पुरोणोंके संदर्भ और विज्ञान की बात करेंगे । ‘मंगल महात्म्य’ इस ब्लाग का प्रारंभ एक साल पूर्व किया था । तब हमने कहा था, मंगलग्रह देवता से जुडे देवादिक संबंधी विषय पर हम चर्चा करेंगे किंतु उस वक्त यह भी कहा था अवकाश स्थित मंगलग्रह संबंधी विज्ञान से जुडे बातोंपर भी हम घ्यान देंगे । हम मंगलग्रह देवता के प्रभाव को श्रद्धा से अनुभवित करते है, किंतु ब्रह्मांड में स्थिर मंगलग्रह के अस्तित्व और प्रभाव को वैज्ञानिक प्रयोगद्वारा अनुभवीत करते है । मनुष्य के जन्म और विवाह कुंडली में प्रभाव दर्शानेवाले सभी ग्रह ब्रह्मांड में स्थिर है । विज्ञान के सिद्धांत सभी ग्रहों के प्रभाव को मानते है । पृथ्वीपर समंदर में पुर्निमा और अमावस को पानी के भरण-विचरण का तांडव होता है । विज्ञान उसे चंद्रबल का प्रभाव मानता है । ग्रहबल के इसी सिद्धांत नुसार मंगलग्रह के प्रभाव को हम श्रद्धा से स्वीकृत करते है ।
ब्रह्मांड स्थित मंगलग्रह के संबंधी विज्ञान क्या सोच रहा है, क्या प्रयोग कर रहा है इस विषयपर आज हमे चर्चा करनी है । सौर मंडल में फिलहाल पृथ्वीपर मानव और अन्य जीवसृष्टी का सृजन है । चंद्रग्रहपर जीवसृष्टी का निर्माण संभव नही हो सकता यह निष्कर्ष वैज्ञानिक प्रयोगोद्वारा सिद्ध हो चुका है । अब विश्व के खगोल और मानववंश शास्त्र के सभी वैज्ञानिक मंगलग्रह पर जीवसृष्टी के निर्माण संबंधी प्रयोग कर रहे है । पृथ्वी से मंगलग्रह पर पहुंचने का प्रयास हो रह है । अद्ययावत यंत्र-तंत्र सुविधावाले यान मंगलपर पहुँच रहे है । अमरिका की अंतरिक्ष खोज संस्थान नासा और भारत की इस्त्रो ने ‘मिशन मंगल’ के प्रयास किए है । फिलहाल अमरिका के नासा का ‘पर्सीवरेंस रोवर’ यान मंगलपर उतर चुका है । पर्सीवरेंस रोवरने मंगलग्रह के पृष्ठभूमि की पहली तसविर पृथ्वीवर भेजी है । सभी मंगलग्रह देवता के लिए यह गौरवपूर्ण विधान है । अर्थात मंगलग्रह संबंधी मानवी आकर्षण के पिछे अरबो वर्ष पूर्व का तर्क भी कारण है । उस संदर्भ का उल्लेख हम लेख के अंत में करेंगे ।
पर्सीवरेंस रोवर यान सात महीने पूर्व पृथ्वी से रवाना किया गया था । चंद दिन पहले वो सफलतापूर्वक मंगलग्रह पर लैंड हुआ है । नासा की यह बड़ी कामयाबी है । नासा के इस मिशन मंगल को भारतीय-अमेरिकी मूल की वैज्ञानिक डॉ. स्वाति मोहन लीड कर रही है । यह उपलब्धी अभिनंदनीय है । भारतीय व्यक्ती मंगलग्रह को देवता मानता है और किसी भारतीय वैज्ञानिक के अगुवाई में पृथ्वीपर का मानव मंगलग्रह तक पहुँच रहा है । इसे भी हम ‘मंगल महात्म्य’ ही मानते है । यह मंगलमय और मंगल योग है । डॉ. स्वाति मोहन के नुसार पर्सीवरेंस रोवर यानने मंगलग्रह पर टचडाउन किया है । वैज्ञानिकों ने कही है, पर्सीवरेंस रोवर यान मंगलग्रह पर की प्राचीन नदी डेल्टा के परिसर में लैंड हुआ है । मंगलग्रह और अंतरिक्ष की तस्वीर लेने के लिए नासा ने यान पर २५ कैमरे लगाए है । मंगलग्रहपर होनेवाली आवाज को रिकॉर्ड करने के लिए यान पर दो माइक्रोफोन भी लगे है । अब यान वहाँपर जीवसृष्टी के संकेतों की तलाश करेगा । यह यान मंगलग्र पर १० साल तक कार्यरत रहेगा और पृथ्वीपर लौटते समय लालग्रह के चट्टान के प्रमाणिक नमूनों को लाने का प्रयास करेगा । अगर वो नमुने पृथ्वीपर पहुँचते है, तो मंगलग्रह पर जीवाणू निर्मिती संबंधी प्रयोग करने में सफलता मिल सकती है ।
वृत्तसंस्था द्वारा प्राप्त संदेशनुसार, पर्सीवरेंस रोवर ने दो मीटर की दूरी से मंगलग्रह के पृष्ठभूमि की असामान्य तौर पर बहुत साफ तस्वीर भेजी है, जिसमें वह केबल के जरिये स्काई क्रेन से जुडा हुआ है और रॉकेट इंजन की वजह से लाल धूल उड रही है । कैलिफोर्निया के पेसाडेना स्थित नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी ने वादा किया है की आने वाले कुछ दिनों में और तस्वीरें जारी की जाएंगी और संभवत: रोवर के उतरने के दौरान रिकॉर्ड आवाज भी सुनने को मिलेगी । मंगलग्रह की तसविरे प्राप्त होने पश्चात मंगलग्रहपर जीवसृष्टी संबंधी चर्चा गरमाने लगी है । अब वैज्ञानिक का मानना है कि अगर कभी मंगलग्रह पर जीवन रहा भी था तो वह तीन से चार अरब साल पहले रहा होगा । नासा की सफलता के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुंसधान संगठन (इस्त्रो) ने बयान दिया है कि वह साल २०२२ तक मंगलग्रह पर अपना दूसरा अंतरिक्ष यान अर्बिटर भेजेगा । इस अंतरिक्ष यान के साथ तीन अंतरिक्ष यात्रियों को भी मंगलग्रह पर भेजा जा सकता है ।
मंगलग्रह और पृथ्वी स्थित जीवसृष्टी का अनोखा रिश्ता है । विज्ञान हमेशा अलग अलग प्रयोग करने में लगा है । आज भी पृथ्वीपर मानव कैसे निर्माण हुआ इस प्रश्न का अंतिम जबाब मिला नही है । उसकी खोज जारी है । हिंदू विचारधारा मानती है, पृथ्वी पर पहला आदमी ‘मनु’ हुआ । मत्स्य पुराण में जिक्र है कि ब्रह्मा ने दैवीय शक्ति से प्रथमतः शतरूपा सरस्वती की रचना की, फिर शतरूपा से मनु का जन्म हुआ । मनु ने कठोर तपस्या के बाद अनंती को पत्नी रूप में प्राप्त किया । शेष मानव जाति मनु और अनंती से उत्पन्न हुई मानी गई है । ऋग्वेद में मनुष्य की कहानी कुछ और है । इस में कहा गया है कि प्रजापति की पांच संतानों से मानव जाति आगे बढ़ी । और एक तर्क लगाया जाता है कि मान जाती अलग-अलग ग्रहों से आयी है । इसमे मान्यता यह है कि पृथ्वीपर पहले पुरुष आया, फिर स्त्री । दोनों में संबंध बना और संसार आगे बढ़ा ।
अब तर्क किया जा रहा है कि पुरुष पृथ्वीपर मंगलग्रह से आया । इस तर्क को अमेरिकी लेखक जॉन ग्रे ने सन १९९० मे लिखी किताब में सामने लाया है । लेखक के मत के अनुसार, पुरुष मंगलग्रह से है और महिलाएँ शुक्रग्रह से आयी । इसी किताब के मुताबिक, एक किस्सा यह भी है कि एक दिन मंगलवासियों ने टेलीस्कोप से शुक्रग्रह की तरफ झांका और वहा जो नजारा उन्हें दिखा, वह अद्भुत था । मंगलवासी शुक्रग्रह पर रहने वाली स्त्रियों को देखते ही उनके प्रेम में पड गए । आव देखा न ताव, मंगलवासियों ने एक स्पेसशिप लिया और शुक्रग्रह पर पहुँच गए । शुक्रग्रह की स्त्रियों ने भी उनका दिल खोलकर स्वागत किया । स्त्रिया पहले से जानती थी कि एक दिन ऐसा आएगा, जब उनके हृदय प्रेम की छुअन महसूस करेंगे । दोनों वर्गो के बीच प्रेम पनपा और वे साथ-साथ रहने लगे । वे एक-दूसरे की आदते समझने की कोशिश करने लगे । इस कोशिश में सालों बीत गए, लेकिन इस दौरान वे प्रेम और सौहार्द से रहे । एक दिन उन्होंने पृथ्वी पर आने का फैसला किया । शुरुआत में सब ठीक था, लेकिन धीरे-धीरे उन पर धरती का असर कुछ इस तरह होने लगा कि उनकी याददाश्त जाती रही । वे भूल गए कि वे दो अलग-अलग ग्रहों से आए प्राणी है । इसलिए उनकी आदते और जरूरते भी एक-दूसरे से जुदा हो हई । एक सुबह वे उठे तो पाया कि एक-दूसरे के बीच के अंतर को वे बिल्कुल भूल चुके है । अब वही मनुष्य और स्त्री मंगलग्रह पर जीवसृष्टी के खोज मे लगे है ।
अब हम आते है हमारे दैवी संकेत तथा परंपरा की ओर । अमरिका के मिशन मंगल के सफलता की बात बसंतपंचमी के दिन विश्वभर में पहुंची । बसंत पंचमी याने विद्या की देवता सरस्वती का जन्मदिन । मनुष्य के जीवन में फुलों और खुशबु से भरे आनंद का माहौल बसंत मास प्रारंभ होता है । हम माता सरस्वती की पूजा करते है । सरस्वती ज्ञान की देवता है । ज्ञान की जिज्ञासा विज्ञान को जन्म देती है । मंगलग्रह के संबंधी किसी भी रुप में ज्ञान प्राप्त होना यह दैवी संकेत है, मिशन मंगल की अगुवाई भारतीय मूल की महिला के हातों होना यह माता सरस्वती की कृपा और अनुबोध का विधी लिखित संकेत है । बसंत मास मानवी जिवन के लिए उपयुक्त और लाभदायी है । बसंत मास उत्तर भारत तथा समीपवर्ती प्रदेश में छठे ऋतु के रुप मे माना जाता है । जो फरवरी-मार्च और अप्रैल के मध्य में अपना सौंदर्य बिखेरता है । माना गया है कि माघ महीने की शुक्ल पंचमी से बसंत मास का आरंभ होता है । फाल्गुन और चैत्र मास बसंत मास के माने गए है । फाल्गुन वर्ष का अंतिम मास है और चैत्र पहला । इस प्रकार हिंदू पंचांग के वर्ष का अंत और प्रारंभ बसंत में होता है । वसंत मास को सभी ऋतुओं का राजा अर्थात ऋतुराज कहा गया है । इस वर्ष बसंत मास कई शुभ योग लेकर आया है । ज्ञान की देवता शुक्र और गुरु दोनों ग्रह इन दिनों शनि के घर में बैठे हुए है । साथ ही इस शुभ मास मे धन योग भी बन रहा है । मंगल और चंद्रमा दोनों ही मेष राशि में मिल रहे है । इसके साथ ही सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग, रवि योग बन रहे है ।
देवादिक का स्थान प्राप्त मंगलग्रह देवता और अवकाशस्थित मंगलग्रह का रिश्ता हमेशा कुतुहल-जिज्ञासा भरा है । मंगलग्रह से पुरुष और शुक्रग्रह से स्त्री पृथ्वीपर आए यह तर्क हमे मंगलग्रह पर संभावित जीवसृष्टी के ओर खिचता है । इसिलिए वैज्ञानिक द्वारा हो रहे प्रयोग हमे मंगलग्रह संबंधी परिपूर्ण ज्ञान अवगत कर रहे है । यह प्रयास कौतुकास्पद और अभिनंदनीय है ।
शुभंम भवतु … मंगलाय नमः !