संपूर्ण भारतवर्ष तथाविश्वभर में हिंदू देवादिक तथा विज्ञानवादी निष्ठा से कार्यरत सभी श्रद्धालु, भक्त तथा सैलानियों का इस मंगलग्रह देवता महात्म्य प्रसारण हेतु लिखे ब्लॉग “मंगलग्रह महात्म्य” पर नम्रतापूर्क स्वागत है. जो भी इस ब्लॉग को मन से पढेगा उसे मंगलग्रह देवता तथा मंगलग्रह की वेद, पुराण से मिलनेवाली और विज्ञानाधारित जानकारी अवगत होगी. “मंगलग्रह महात्म्य” यह किसी अंधश्रद्धा का प्रसारण नही करता. किंतु अवकाशस्थित ग्रह और उनके प्रभाव का विज्ञानादी व पौराणिक महत्त्व श्रद्धा और परम्परानुसार स्पष्ट करता है. इस लेखन का प्रयास श्रद्धालु तथा भक्तों की ईच्छा, अपेक्षा, शंकाओं की सापेक्षता, अनुभूतिजन्य और प्रभावित चिकित्सा की जानकारी प्रेषित करना है.
विस्तर्ण अवकाश में सौरमंडल कार्यरत है. पृथ्वी और उस पर स्थित सभी जिव सौरमंडल के केंद्रीत घटक है. सौरमंडल का कार्यान्वयन एक सिस्टीम से करोडो वर्ष पूर्वापार हो रहा है. पृथ्वीपर जब जिव का निर्माण हुआ उस वक्त किसी को कल्पना भी नही थी के अवकाश में सौरमंडल भी कार्यरत होता है. जैसे जैसे मानव अनुभवि होता गया उसे पृथ्वी भवताल के ग्रह और तारों का ज्ञान होता गया. पृथ्वी अपने आप में गुरूत्वाकर्षण शक्ती धारण करती है, इस विज्ञान सूत्र का साक्षात्कार मानव को कई वर्षों बाद हुआ. पृथ्वी से संलग्न उपग्रह चंद्रमा भी अपने आप में गुरुत्वाकर्षण शक्ती धारण करता है. उसी के कारण पौर्णिमा और अमवस्या को पृथ्वीस्थित समंदर में उफान आता है, इसका ज्ञान भी विज्ञान की कक्षा विस्तार के बाद हुआ.
खगोलशास्त्रीय बहुतांश घटनाओं का कारण और परिणाम आज भी विज्ञान सिद्ध नही कर पाया है. किंतु भारतीय ऋषी, मुनिओं ने अपने सातत्यपूर्ण निरीक्षण, अनुभव के आधारपर अवकाशस्थित ग्रह और तारों के प्रभाव और परिणाम को जांचा है, परखा है. यह क्रिया किसी एक पीढी में पूर्ण नहीं हुई. करोडों वर्ष लगे इसका विस्तार होने के लिए. इसी निरीक्षण पर आधारित हिंदू धर्म के वेद, पुराण आदि धर्मग्रंथ आजभी उपलब्ध है. भारतीय खगोलशास्त्र और उसिके साथ हमारे ज्योतिष्यशास्त्र का भी विस्तार हुआ है. यह दोनो शास्त्र परस्पर पूरक और परस्पर आधारित है.
आज का विज्ञान मंगलग्रह के प्रभाव को मान्य करता है. अमरिका जैसा देश मंगलग्रह पर अवकाशयान में मानव को भेजने का प्रयास कर रहा है. भारतीय अवकाश संशोधन संस्था इस्त्रो ने भी मंगलग्रह पर मानव विरहित यान भेजा है. मंगलग्रह संदर्भ में यह विश्वभर की उत्सुकता उसके प्रभाव और परिणाम को अधिक स्पष्ट कर रही है. मंगलग्रह के इसी प्रभाव को हम अध्यात्म, परम्परा, दैववाद और विज्ञानवाद पर जरुर परखनेवाले है.
जैसे जैसे मनुष्य को ग्रह और तारों के प्रभाव का अनुमान होने लगा वैसे वैसे मनुष्य ने उन ग्रह, तारों को देवता स्वरुप में स्वीकार किया. हमारी संस्कृति सिंधू सह हरप्पासे प्रारंभ होती है. इस संस्कृति में सूर्य, चंद्र, वायु, आकाश और जल को पंच महाभूत माना गया है. वैसे ही मंगलग्रह को भी देवता स्वरुप स्वीकार कर उसके प्रभाव को कारक याने करनेवाला माना गया है. सिंधू संस्कृति प्राणी मात्राओं को भी देवता स्वरुप मानती थी. उस कारण वृषभ, अश्व, श्वान, मत्स्य, कासव, व्याघ्र, हिरण, मोर, मुषक इनको भी देवता के स्वरुप में स्वीकार कर मनुष्य के जन्म कुंडली में ग्रह या फिर राशि स्वरुप में सन्मान दिया गया है. यह परम्परा की धरोहर है. इसी प्रकार मंगलग्रह के अस्तित्व को अनुभवित कर उसके प्रभाव कारण उसेभी मंगलग्रह देवता का स्वरुप दिया गया है.
भारत में महाराष्ट्र राज्य के जलगाव जिले में अमलनेर तहसील में मंगलग्रह देवता का अतिदुर्लभ मंदिर है. यहाँ पर मंगलकारक देवता का आवाहन कर उसी से संबंधित सारे पूजाविधी का अनुष्ठान किया जाता है. तथा हर मंगलवार को मंगलग्रह देवता शांति के लिए अभिषेक किया जाता है. मंगलग्रह के प्रभाव और परिणाम का यह एक पारंम्पारिक शांति प्रयास है. यहाँ पर किसी अंधश्रद्धा का प्रचार-प्रसार नही होता. ना ही किसी श्रद्धालु या भक्त के भावनाओं का अवमान होता है. मंगलग्रह देवता के महात्म्य नुसार केवल उसकी आराधना और मंगलमय कारकता का आवाहन होता है. हम लोग इस ब्लॉग के माध्यम से मंगलग्रह देवता के पारम्पारिक और विज्ञानाधारित प्रभाव को संयमता और श्रद्धा से समजने की कौशिश जरुर करेंगे.
जय मंगलग्रह देवता की …!
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